भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन / नीलाभ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलाभ |संग्रह=चीज़ें उपस्थित हैं / नीलाभ }} एक दिन हाँ, ए...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन

हाँ, एक दिन

वे खड़े होकर पूछेंगे :

कौन-सा रास्ता

इस नरक के बाहर जाता है

एक दिन

वे अपनी मज़बूत टांगों पर

खड़े होकर कहेंगे :

हम जा रहे हैं

एक दिन

वे तुम्हारा तख़्त

उठा कर पलट देंगे

और तुम उन्हें रोक नहीं सकोगे


(रचनाकाल : 1977)