भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लन्दन डायरी-10 / नीलाभ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:08, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलाभ |संग्रह=चीज़ें उपस्थित हैं / नीलाभ }} स्मृति के आक...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्मृति के आकाश पर

अब भी

एकाध भटक हुआ बवण्डर

मंडराता है


याद के पेड पर

कुछ पत्तियाँ

अब ही मौजूद हैं

जिन्हें तेज-से-तेज आंधी भी

झकझोर कर

उड़ा नहीं पाई