भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भुजनि बहुत बल होइ कन्हैया / सूरदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग सोरठ (तेरैं) भुजनि बहुत बल होइ कन्हैया । <b...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग सोरठ

(तेरैं) भुजनि बहुत बल होइ कन्हैया ।
बार-बार भुज देखि तनक-से, कहति जसोदा मैया ॥
स्याम कहत नहिं भुजा पिरानी, ग्वालनि कियौ सहैया ।
लकुटिनि टेकि सबनि मिलि राख्यौ, अरु बाबा नँदरैया ॥
मोसौं क्यौं रहतौ गोबरधन, अतिहिं बड़ौ वह भारी ।
सूर स्याम यह कहि परबोध्यौ चकित देखि महतारी ॥

मैया यशोदा जी बार-बार छोटी सी भुजा देककर कहती हैं-`कन्हाई! तेरी भुजा में बहुत बल हो ।' श्यामसुन्दर कहते हैं-`गोपों ने (पर्वत उठाने में मेरी सहायता की, इससे मेरा हाथ दुखा नहीं । सब ने और नन्द बाबा ने भी मिलकर लाठियों के सहारे उसे रोक रखा । नहीं तो भला, वह गोवर्धन मुझसे कैसे रोके रुकता, वह तो बड़ा और भारी है ।' सूरदास जी कहते हैं कि माता को चकित देखकर श्यामसुन्दर ने यह कह कर आश्वासन दिया ।