भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोवत नींद आइ गई स्यामहि / सूरदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग बिहागरौ सोवत नींद आइ गई स्यामहि ।<br> महर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग बिहागरौ


सोवत नींद आइ गई स्यामहि ।
महरि उठी पौढ़इ दुहुनि कौं, आपु लगी गृह कामहिं ।
बरजति है घर के लोगनि कौं, हरुऐं लै-लै नामहि ।
गाढ़े बोलि न पावत कोऊ, डर मोहन-बलरामहि ॥
सिव-सनकादि अंत नहिं पावत, ध्यावत अह-निसि-जामहिं ।
सूरदास प्रभु ब्रह्म सनातन, सो सोवत नँद-धामहिं ॥

भावार्थ :-- सोते ही श्यामसुन्दर को निद्रा आ गयी । व्रजरानी दोनों भाइयों को सुला कर उठीं और स्वयं घर के काम में लग गयीं । धीरे-धीरे नाम ले-लेकर घर के लोगों को मना करती हैं मोहन और बलराम जी के (जाग जाने के) भय से कोई जोर से बोल नहीं पाता है । सूरदास जी कहते हैं, रात-दिन प्रत्येक समय ध्यान करते हुए भी शंकर जी तथा सनकादि ऋषि जिनका अंत नहीं पाते, वे ही सनातन ब्रह्मस्वरूप मेरे स्वामी नन्दभवन में सो रहे हैं ।