भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक अकेला / गिरीष बिल्लोरे 'मुकुल'
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:41, 21 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरीष बिल्लोरे 'मुकुल' |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एक अकेला
कँवल ताल में
संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,
तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ ... है
तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल
कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है ,
उसे दर्द क्या ?
कौन सोचता !!