भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमसे मिलकर / गिरीष बिल्लोरे 'मुकुल'

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:43, 21 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरीष बिल्लोरे 'मुकुल' |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हां बरसों बाद
तुमसे मिलकर
अतीत के उस छोर पर
पाता हूं ख़ुद को
जहां
जकड़ गई थी जुबां
"पता नही क्या कहोगी
क्या सोचोगी
हां या न
कह न सका
मुझे तुमसे प्यार है..!!"-
 कह न सका था
शायद वही जो तुम सुनना चाहतीं थीं
है..न...?
अरे हां याद आया
एक बार तुमने पूछा तो था..
मेरे कल के बारे में
आकाश को देखता
तुम्हारे सवाल पर अपने उत्तर का
 सुनहरा-सपनीला रोगन न छिड़क सका
पर जवाब न देने का दर्द भोगता मैं
आज़ तुमको खुश देख खुश हूं..
फ़िर भी अतीत के उस छोर तक
निगाहों को जाने से कैसे रोकूं
तुम्ही कहो न