भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आजु हरि धेनु चराए आवत / सूरदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:40, 29 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} आजु हरि धेनु चराए आवत ।<br> मोर-मुकुट बनमाल बिर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आजु हरि धेनु चराए आवत ।
मोर-मुकुट बनमाल बिराजत, पीतांबर फहरावत ॥
जिहिं-जिहिं भाँति ग्वाल सब बोलत, सुनि स्रवननि मन राखत ।
आपुनि टेर लेत ताही सुर, हरषत पुनि पुनि भाषत ॥
देखत नंद-जसोदा-रोहिनि, अरु देखत ब्रज-लोग ।
सूर स्याम गाइनि सँग आए, मैया लीन्हे रोग ॥

भावार्थ :-- आज श्याम गायें चराकर आ रहे हैं । मयूरपिच्छ का मुकुट और वनमाला शोभा दे रही है, पीताम्बर का पटुका उड़ रहा है । सब गोप सखा जिस-जिस प्रकार से बोलते हैं, उसी प्रकार से (उसी भाव से) उनकी बातें सुनते हैं तथा उनका मन रखते हैं । स्वयं भी सखाओं के स्वर-में-स्वर मिलाकर उसी स्वरमें टेर लगाते हैं और हर्षित होकर बार-बार उसे दुहराते हैं । श्रीनन्द जी, यशोदा मैया और रोहिणी माता देख रही हैं , व्रज के सब लोग (उनका आना) देख रहे हैं । सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर गायों के साथ आ गये । मैया ने--`मेरे लाल की सब रोग-व्याधि मुझे लगे' यह कहकर उनकी बलैया ली ।