भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गैयनि घेरि सखा सब ल्याए / सूरदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:54, 29 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग धनाश्री गैयनि घेरि सखा सब ल्याए ।<br> देख...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग धनाश्री

गैयनि घेरि सखा सब ल्याए ।
देख्यौ कान्ह जात बृंदावन, यातैं मन अति हरष बढ़ाए ॥
आपुस में सब करत कुलाहल, धौरी, धूमरि धेनु बुलाए ।
सुरभी हाँकि देत सब जहँ-तहँ, टेरि-टेरि हेरी सुर गाए ॥
पहुँचे आइ बिपिन घन बृंदा, देखत द्रुम दुख सबनि गँवाए ।
सूर स्याम गए अघा मारि जब, ता दिन तैं इहिं बन अब आए ॥

सब सखा गायों को एकत्र करके हाँक लाये; उन्हाने देखा कि कन्हाई वृन्दावन जा रहा है, इससे उनके मन में अत्यन्त हर्ष हुआ । धौरी, धूमरी गायों को पुकार-पुकारकर सब परस्पर कोलाहल कर रहे हैं । सब गायों को इधर-उधर हाँक देते हैं और उच्च स्वर से `हेरी' स्वर में (पदमें `हेरी' शब्द लगाकर) गा रहे हैं । सब-के सब सघन वृन्दावन में आ पहुँचे, वहाँ के वृक्षों को देककर सभी के कष्ट (सारी थकावट) दूर हो गये । सूरदास जी कहते हैं--श्यामसुन्दर जिस दिन अघासुर को मारकर गये थे, उस दिन के बाद आज इस वन में आये हैं।