भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुख दरिया था बहता आया / पुरुषोत्तम प्रतीक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:26, 29 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम प्रतीक |संग्रह=पेड़ नह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुख दरिया था बहता आया
मन सागर था सहता आया

जंगल चीख़ रहा है सारा
एक परिंदा कहता आया

पानी था बालू का घर था
वो बहता ये ढहता आया

धूप, हवा पानी की साज़िश
पत्ता-पत्ता सहता आया

धरती महकाई है उसने
जो ख़ुशबू-सा रहता आया