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अपने आँसू तेरी आहें / पुरुषोत्तम प्रतीक

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अपने आँसू तेरी आहें
किसको छोड़ें किसको चाहें

सूखा पत्ता चेहरा-चेहरा
नस-नस में हैं सब्ज़ कराहें

प्यासी चिड़िया ने दम तोड़ा
सुनकर पानी की अफ़वाहें

जंगल से गुज़रा है दरिया
अपने आप बनाकर राहें

नाटक है जीवन, मुश्किल भी
अपना ही किरदार निबाहें

बंदर जोगी, दीवानों को
घर की हैं बेकार सलाहें

फिर सोचो उन तस्वीरों पर
जिनको केवल यार सराहें

चेहरे कुछ से कुछ होते हैं
करती हैं जब वार निगाहें

वो ख़ुद भी क़द्दावर निकला
जिसने फैलाई हैं बाहें