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आज वैसा मन कहाँ है / पुरुषोत्तम प्रतीक

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आज वैसा मन कहाँ है
देख वो दरपन कहा है

ख़्वाब के आगे चलें तो
रास्ता रौशन कहाँ है

ये इमारत की बुलंदी
वो खुला आँगन कहाँ है

जून है या जनवस्री अब
भीगता सावन कहाँ है

साँप चंदन घिस रहे हैं
आपको चंदन कहाँ है