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दूँकें नहीं / पुरुषोत्तम प्रतीक

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खाम-खाह आसमान तक दूँकें नहीं
धरती की सही बात कहने में हम चूकें नहीं

आदमक़द जीकर आकाश
कैसे हो आख़िर विश्वास
परिचित हों इस अपनी भूल से
फूटेंगे शूल ही बबूल से, बन्दूकें नहीं

ज्ञात अभी कितना अज्ञात
सोचें यदि इसका अनुपात
बदले में पाएँगे फोख ही
सन्तानें जन्माती कोख ही, सन्दूकें नहीं