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भूख की कहानी / पुरुषोत्तम प्रतीक
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अनबोले ओठों का बार-बार कँपना
बूँद-बूद झाँक रहा टूक-टूक सपना
एक टूक रोटी
चार घूँट पानी
भूख की कहानी
चेहरे पर रोज़-रोज़ व्यंग्य का पनपना
टूट गया बापू
टूट गई अम्मा
देह बस मुलम्मा
अपनों से अपना कह दाब लिया अपना
रो पड़ी रसोई
बात नहीं मीठी
घर हुआ अँगीठी
आँखों के सागर को आग से तुरपना
’रचनाकाल : 05 मई 1977