भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथ जब रुसवाइयाँ होंगी / पुरुषोत्तम प्रतीक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:23, 30 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम प्रतीक |संग्रह=पेड़ नह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साथ जब रुसवाइयाँ होंगी
फिर कहाँ तनहाइयाँ होंगी

आपके इन आइनों में हम
हम नहीं, परछाइयाँ होंगी

पास में कुछ देर तो बैठो
फिर कहाँ अमराइयाँ होंगी

हादसों के बाद क्या होगा
फिर वही शहनाइयाँ होंगी

इस नदी में डूबकर देखो
हर जगह गहराइयाँ होंगी

तुम हिमालय हो मगर सुन लो
और भी ऊँचाइयाँ होंगी

हर महक रस रंग के पीछे
फूल की अँगड़ाइयाँ होंगी