भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कानन में बोलि रहे / शिवदीन राम जोशी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 30 मई 2012 का अवतरण
कानन में बोलि रहे गैयन के गोलन में,
मोर मुकुट माथे देख चन्द्रमा लजाय जात।
ऐसी छबि जांकी कबि बरनन करेगो कहाँ,
सारद मति थाकी वेद ब्रह्मा गुण गाय जात।
कहे शिवदीन दीनबन्धु जग जाने तुम्हे,
दीनबन्धु होके क्यूँ मोको भरमाय जात।
याते लर्ज-लर्ज कहूँ अर्ज तो सुनोहीगे,
आवो क्यूँ ना प्राणनाथ प्राण अकुलाय जात।