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चले सब बृंदाबन समुहाइ / सूरदास
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चले सब बृंदाबन समुहाइ ।
नंद-सुवन सब ग्वालनि टेरत, ल्यावहु गाइ फिराइ ॥
अति आतुर ह्वै फिरे सखा सब, जहँ-तहँ आए धाइ ।
पूछत ग्वाल बात किहिं कारन, बोले कुँवर कन्हाइ ॥
सुरभी बृंदाबन कौं हाँकौ, औरनि लेहु बुलाइ ।
सूर स्याम यह कही सबनि सौं,आपु चले अतुराइ ॥
सब (बालक) एकत्र होकर वृन्दावन चले । नन्दनन्दन सब गोपबालकों को पुकार रहे हैं - `गायों को घुमा लाओ ।' इससे सब सखा अत्यन्त आतुर होकर लौटे और जहाँ-तहाँ से दौड़े आये । गोपबालक यह बात पूछ रहे हैं -`कुँवर कन्हाई ! किस लिये हम सबको तुमने बुलाया ?'सूरदास जी कहते हैं--श्यामसुन्दर ने सबसे यह कहा कि गायें वृन्दावन के लिये हाँको, दूसरे सब सखाओं को भी बुला लो!' और स्वयं (भी) शीघ्रतापूर्वक चल पड़े ।