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पुल की महत्ता / राजेन्द्र सारथी

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मैं मानता हूं
बहुत फर्क है पुल बनाने और खाई पाटने में
खाई पाटने में युग लगते हैं
पुल बनाने में लगते हैं चंद वर्ष/महीने/दिन
खाई पाटने से मिलती है भव्यता, अखंडता, एकता
पुल बनाने से बनते हैं व्यावसायिक संबंध
खाई पाटने से दो ज़मीन जुड़कर होती हैं एक
पुल बनाने से एक ज़मीन को मिलता है दूसरी का पड़ोस
खाई पाटने वाला अपनी आंखों में देखता है कल
पुल बनाने वाला देखता है वर्तमान।

भाईजान! खाई पाटते हैं युगपुरुष और उनके पथगामी
लेकिन अपनी हर सांस का गणित विचारने वाले कारीगरों को
सासें चुकने से पहले
पुल बनाना ही लगता है श्रेयस्कर
मानते हैं वे
न होने से कुछ अच्छा है।