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आजु मैं गाइ चरावन जेहौं / सूरदास

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राग रामकली

आजु मैं गाइ चरावन जेहौं ।
बृंदाबन के बाँति-भाँति फल अपने कर मैं खेहौं ॥
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखो अपनी भाँति ।
तनक-तनक पग चलिहौ कैसैं, आवत ह्वै हैं राति ॥
प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत हैं साँझ ।
तुम्हरौ कमल-बदन कुम्हिलैहै, रेंगत घामहिं माँझ ॥
तेरी सौं मोहि घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक ।
सूरदास-प्रभु कह्यौ न मानत, पर्‌यौ आपनी टेक ॥


भावार्थ :-- `आज मैं गाय चराने जाऊँगा । वृन्दावन के अनेक प्रकार के फलों को अपने हाथों (तोड़कर) खाऊँगा ।' (माता बोलीं-)`मेरे लाल ! ऐसी बात मत कहो ! अपनी (शक्ति की) ओर तो देखो, तुम्हारे पैर अभी छोटे-छोटे हैं, (वन में कैसे चलोगे ? (घर लौटकर) आने में रात्रि हो जायगी । (गोप तो) सबेरे गाये चराने ले जाते हैं और सन्ध्या होने पर घर आते हैं । तुम्हारा कमलमुख धूप में घूमते-घूमते म्लान हो जायगा ।' (श्याम बोले-)`तेरी शपथ ! मुझे धूप लगती ही नहीं और थोड़ी भी भूख नहीं है ।' सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी ने अपनी हठ पकड़ रखी है, वे (किसी का) कहना नहीं मान रहे हैं ।