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आतंक / नंद चतुर्वेदी

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उसने एक कविता लिखी
राष्ट्रभक्ति की
जब वह पढ़ी गयी
तब वे सब लोग खड़े हो गये
दुबले-पतले, काले-कलूटे, भूखे,
अनपढ़
उम्मीद के खिलाफ
वे खड़े हो गये

तब अफसर ने कवि के कान में कहा-
इस ने सुनाते
यह कोई कविता नहीं थी
कवि डर कर बैठ गया
या यह अफसर आलोचक का
आतंक था
लेकिन कभी-कभी इस तरह भी होता है
कविता का अन्त।