भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी का पता पूछ रही मछली / कमलेश्वर साहू

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:38, 10 जून 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ताल तलैया
पोखर नदिया
सागर धरती
सबके चेहरे पर थी उदासी
सबके जीवन में था सूखा
पानी का पता पूछ रही थी मछली

पता लेकर पहुंची थी
पानी बोतल में बन्द था

मछली के जीवन में
ऐसा पहली बार हो रहा था

बोतल खोलने का
रहस्य नहीं जानती थी मछली
मगर जानने को बेचैन थी
उसकी बेचैनी
तडप में बदल चुकी थी

मछली का तडपना
मनुष्यों के तडपने जैसा था

मछली इतना जान पायी
पानी को बोतल में बन्द करने वालों के
रचे गये तिलिस्म में बन्द है कहीं
पानी को आज़ाद कराने का रहस्य

मछली महज इतना ही जान पायी
तिलिस्म को तोडने का राज़
जिन्हे मालूम है
वे तिलिस्म की
पहरेदारी कर रहे हैं.