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मैं चलता / उदयशंकर भट्ट
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मैं चलता
मैं चलता मेरे साथ नया सावन चलता है
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है
उत्थान पतन कंदुक पर मैं गिरता और उछलता
सांसों की दीपशिखा में मैं लौ सा यह जीवन जलता
धूमायित अगुरू सुरभि सा मैं छीज रहा पल पल
मेरी वाणी के स्वर में सागर भरता निज संबल
मैं चलता मेरे साथ अहं गर्जन चलता है
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है
मैं चलता रवि शशि चलते किरणों के पंख लगाकर
भू चलती सतत प्रगति पथ नदियों के हार बनाकर
झरने झर झर झर झरते भर भर भरती सरिताऐं
दिन रात चला करते हैं चलते तरूवर लतिकाऐं
मैं चलता मेरे साथ पृकृति कानन चलता है
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है
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