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चर्चा की समाप्ति पर / अरविन्द श्रीवास्तव
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नेहयुक्त लफ़्जों के साथ
समेटी गई किस्म-किस्म की छप्पनछुरी
नीयत और संदेहों के खुले ताले और
बंद हुए जिरह के पन्ने
चर्चा की समाप्ति पर
अदबी तकरीम
मिले उत्तप्त हाथ
चूँकि पहन रखे थे सबों ने
हाथों में दस्ताने
सो संदेह की हल्की परत
हमेशा की तरह
स्पर्श के बीच कायम रही ।