भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भरोसा / अरविन्द श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 14 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव |संग्रह=राजधा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे-जैसे पहचाना रिश्तों को
कलेजा थर्राया
हृदय हुआ लहूलुहान !

पाँव फिसले चौरासी में
नब्बे में टूटीं हड्डियाँ
चौरानवे में किडनी फेल
अनठानवे में खौले ख़ून
और हुई इधर आँखें धुँधली
अभी-अभी माथा ठनका

शरीर के यही कुछ हिस्से थे
हमारे रिश्तेदार
इनकी अलग-अलग पहचान थी
और अलग-अलग सत्ता

लाख आफ़त आने पर भी
इन्होंने कभी मुझ पर भरोसा नहीं किया!

यह अलग बात है कि
इन्हें तनिक भी कुछ हुआ
तो मैंने
ख़ूब बोला हल्ला!