भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारा प्रेम / अरविन्द श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 14 जून 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतिहास से पढ़ाई की और करता हूँ चाकरी
कविता की

करता हूँ चौका-बर्तन
झाड़ू-बहारू
रोपता हूँ फूल-पत्तियाँ
लगाता हूँ उद्यान

सौंपता हूँ उसे दिल-दिमाग
शौर्य-पराक्रम
सपने सारे के सारे

करता हूँ इतना ज़्यादा प्रेम
कि अक्सर सहमी,
सशंकित आँखों से
देखती है कविता मुझे !