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साँकल / अरविन्द श्रीवास्तव
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आसान नहीं था विस्मृत करना
सभी बातों को
किसी ने सहेज रखा था
उनचालिस के युद्ध को
किसी ने छह और नौ अगस्त की
आणविक बमबारी को
किसी ने वियतनाम को याद रखा था
किसी ने बगदाद को
किसी ने नौ-ग्यारह तो किसी ने छब्बीस-ग्यारह को
किसी ने अयोध्या, किसी ने बामियान
सभी ने सहेजा है सिर में
सालन-सा सुर्ख भुना
समय का छोटा-छोटा टुकड़ा
यहाँ जब भी खोलता है
कोई अपनी साँकल
दिखता है सामने
एक खौफनाक चेहरा
जिसे वह देखना नहीं चाहता !