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नींद के बारे में उनींदा विचार / अरविन्द श्रीवास्तव
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सेहत के लिए नींद की ज़रूरत थी
लेकिन नींद के लिए
सेहत की नहीं
नींद सनातनी थी
सभी के लिए बिस्तर पर
आलिंगन में, धरती और कंधों पर
आषाढ़ के दिन और पूस की रातें
देती थी दावत महामहिम को
कौवे और बाबा की कानी कुतिया को
सदियों से आती है नींद दबे पाँव
नयी बहुरिया-सी
तानाशाह और कवियों की आँखों में भी
सभ्यताओं का अनुबंध पक्का था
नींद से
बगैर किसी लिखित दस्तावेज़ के ।