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समलैंगिक कार्यक्रम के प्रति / अरविन्द श्रीवास्तव

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न्यूनतम साझा कार्यक्रम की प्रचलित परंपरा
अपनी ज़िम्मेदाराना चुप्पी तोड़ते हुए
हत्यारे के पक्ष में
क्षमा की याचना करते
निर्वस्त्र झुकी है
यह जानते हुए कि धरती
एक पौधे की अपेक्षा नहीं रख सकती
समलैंगिकों से

ऐसे समय में जब धरती पर
शूरवीर और पराक्रमी जनों की आवश्यकता
शिद्दत से महसूस की जा रही थी,
अभी कई-कई ग्रहों को भेदना शेष था
नैसर्गिकता के कथित दमघोंटू पचड़े के विरुद्ध
स्वर्ग के नए दरवाज़े की चाभी
समलैंगिकों ने हथिया ली थी
 
सभ्य राष्ट्रों में उनकी लामबंदी और
टोले-नगर, महानगर बन रहे थे जंगल
जिसके लिए जीवन शैली की नई परिभाषा
गढ़ी जा रही थी
जिसमें नैतिकता को रूढ़िवादी सोच के खाते में
डाला गया था

साझे कार्यक्रम की सफलता
चुप्पी पर आधारित थी
एच०आई०वी० तरह की जोख़िमों को देखते हुए
जुबान पर कंडोम की सिफ़ारिश थी और
इसे लोकप्रिय बनाने की सहमति
आम होती जा रही थी
किसी बहसबाज़ी पर ह्यूमेन-राइट अब
अधिक चौकन्ना दिख रहा था

कुछ और नस्लें लुप्त होने वाली थीं
कुछ वायरस अश्व-गति से करीब आ रहे थे
साझे कार्यक्रम के मुख्य एजेंडे मे
निर्धारित था जिनका राज्याभिषेक

कूँ-कूँ करती कुछ आवाज़ें
दबोच ली गई थीं
कुछ आँखें नाटक कर रही थीं
अंधा होने का ।