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गणतंत्र पर्व / कोदूराम दलित

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भारत के आज जन-जन फूले नहीं समाते
भारत के आज कण-कण फूले नहीं समाते
भारत का कोना-कोना है आज जगमगाया
गणतंत्र पर्व आया, गणतंत्र पर्व आया ।

माँ हिंद के जलधि ने पावन चरण पखारे
मंडरा रहा गगन में घनश्याम रूप धारे
है आज चर-अचर में नव जागरण समाया
गणतंत्र पर्व आया, गणतंत्र पर्व आया ।

बरसा सुमन सलोने, तरुओं ने अर्चना की
ले स्वर्ण-थाल कर में, दिनकर ने वंदना की
जय-जय हो हिंद माँ की — कह चाँद मुस्कुराया
गणतंत्र पर्व आया, गणतंत्र पर्व आया ।

मुख खोलकर सुहाना कलियाँ भी मुस्कुराई
रंगीन पंख ताने तितली ने दी बधाई
पीकर मधुर-मधुर रस भौंरा यूँ गुनगुनाया
गणतंत्र पर्व आया, गणतंत्र पर्व आया ।

तरू डाल पर सुशोभित है पंछियों की टोली
स्वाधीनता अमर हो — बुलबुल चहक के बोली
मनहर मयूर नाचा, कोयल ने गान गाया
गणतंत्र पर्व आया, गणतंत्र पर्व आया ।

क्या शान से हमारा फहरा रहा तिरंगा
उन्नत सुनील नभ में लहरा रहा तिरंगा
जय-जय निनाद गूँजा सर्वत्र हर्ष छाया
गणतंत्र पर्व आया, गणतंत्र पर्व आया ।

बस आज एक होकर हम सब यही मनाएँ
सारा जगत सुखी हो, सर्वत्र शांति छाए
दुख-द्वेष का हो अविलम्ब ही सफ़ाया
गणतंत्र पर्व आया, गणतंत्र पर्व आया ।