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दिसम्बर 1903 / कंस्तांतिन कवाफ़ी
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जब मैं बात नहीं कर पाता अपने प्यार की
तेरे बालों, होंठों, आँखों की, तुझ दिलदार की
तेरा चेहरा बसा रहता है मेरे दिल में तब भी
तेरी आवाज़ गूँजती है, जान, मेरे मन में अब भी
सितम्बर के वे दिन सुनहले, दिखाई देते हैं सपनों में
रंग देते हैं मेरी बातों को अपनों में
जब भी कहता हूँ कुछ, बस, तू याद आती है
मेरी ज़ुबान तो ओ प्रिया, बस तेरे ही गीत गाती है
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय