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यहाँ ठीक हूँ / मनोज कुमार झा
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जितनी देर में एक शब्द ढूँढते हो
उतनी देर में तों कपड़े पर इस्तिरी हो जाएगी
मेहनती रहे तो एक शर्त ख़रीद हो सकते हो
बुद्धि भी रही तो कपड़े की दुकान
जिन्हें नसीब है वो तो दुनिया घूम सकते हैं
अब मैं क्या करूँ दुनिया घूमकर
शब्दों की एक बाड़ी है काँटो भरी,
फूल भी कुछ आज के कुछ पुराने
और है ही हवा, और जल, शहद, नमक
ज...ल...श...ह...द...न...म...क....।