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दर्पण की शिखर दोपहर में / सुरजीत पातर
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दर्पण की शिखर दोपहर में
एक बदसूरत लड़की
सुलग रही दर्पण की शिखर दोपहर में
व्यर्थ ही ढूँढ रही
दर्पण के मरुस्थलों से दिल का कँव
अनुवाद: चमन लाल