गाँधी के प्रति / मुकुटधर पांडेय
तुम शुद्ध बुद्ध की परम्परा में आए
मानव थे ऐसे, देख कि देव लजाए
भारत के ही क्यों, अखिल लोक के भ्राता
तुम आए बन दलितों के भाग्य-विधाता !
तुम समता का संदेश सुनाने आए
भूले-भटकों को मार्ग दिखाने आए
पशु-बल की बर्बरता की दुर्दम आँधी
पथ से न तुम्हें निज डिगा सकी हे गाँधी !
जीवन का किसने गीत अनूठा गाया
इस मर्त्यलोक में किसने अमृत बहाया
गूँजती आज भी किसकी प्रोज्वल वाणी
कविता-सी सुन्दर सरल और कल्याणी !
हे स्थितप्रज्ञ, हे व्रती, तपस्वी त्यागी
हे अनासक्त, हे भक्त, विरक्त विरागी
हे सत्य-अहिंसा-साधक, हे संन्यासी
हे राम-नाम आराधक दृढ़ विश्वासी !
हे धीर-वीर-गम्भीर, महामानव हे
हे प्रियदर्शन, जीवन दर्शन, अभिनव हे
घन अंधकार में बन प्रकाश तुम आए
कवि कौन, तुम्हारे जो समग्र गुण गाए ?