भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ / अशोक शर्मा

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:06, 12 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक शर्मा |संग्रह= }} <Poem> तुम नहीं ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम नहीं हो बताओ तो अब कौन से घर जाऊं मैं!!

मन करता है बस जिंदा रह कर भी मर जाऊं मैं!!

 

तुम्हारे चले जाने के बाद सब सूना सा लगता है,

बात करने को नहीं है , मन है चुप कर जाऊं मैं!!

 

सबसे बातें मुलाकातें, बस बेगानी सी लगती है,

तुमे मिलने का मन हो, तो कहो कौन घर जाऊं मैं!!

 

कभी कभी तो हर चेहरा माँ तेरे जैसा लगता हैं ,

अब तुम जैसी ढूंढने को कहाँ और किधर जाऊं मैं!!

 

क्यों इतनी तुम अनजान, और निर्मोही हो गई माँ,

तेरी यादों का पावन दिया कैसे बुझा कर जाऊं मैं!!

 

अब तो बस एक ही मेरी, इच्छा है पूरी कर देना,

अगले जन्म मैं भी तेरा ही बेटा आ कर बन जाऊं मैं!