भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उषा के समय / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:20, 19 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=इत्यलम् / अज्ञेय }} {{...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

प्रियतम, पूर्ण हो गया गान!
हम अब इस मृदु अरुणाली में होवें अन्तर्धान!
लहर-लहर का कलकल अविरल, काँप-काँप अब हुआ अचंचल
व्यापक मौन मधुर कितना है, गद्गद अपने प्राण!

ये सब चिर-वांछित सुख अपने, बाद उषा के होंगे सपने-
फिर भी इस क्षण के गौरव में हम-तुम हों अम्लान।
नभ में राग-भरी रेखाएँ, एक-एक कर मिटती जाएँ-
किसी शक्ति के स्वागत को है यह बहुरंग वितान।

मरण? पिघल कर सजल शक्ति से, मिल जाना उस महच्छक्ति से!
करें मृत्यु का क्यों न उल्लसित हो कर हम आह्वान!
राग समाप्त! चलो अब जागो, निद्रा में नव-चेतन माँगो!
नयी उषा का मृत्यु हमारी से होगा उत्थान!
प्रियतम, पूर्ण हो गया गान!

डलहौजी, सितम्बर, 1934