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कल की निशि / अज्ञेय

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मिथ, कल मिथ्या :
कल की निशि घनसार तमिस्रा और अकेली होगी-
स्मृति की सूखी स्रजा रुआँसी एक सहेली होगी।
चरम द्वन्द्व, आत्मा नि:सम्बल, अरि गोपित, मायावी-
प्यार? प्यार! अस्तित्व मात्र अनबूझ पहेली होगी!

दिल्ली-शिलङ् (रेल में), 8 जनवरी, 1945