भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अरमां भी मचलते है / प्रेम कुमार "सागर"
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:58, 20 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम कुमार "सागर" |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
किसी की बंद आँखों में अभी भी ख्वाब पलते है
'मोहब्बत' की फ़ज़ा में साए चुपके से टहलते है |
'इश्क' की तपिश,पत्थर पिघलकर मोम हो जाए
बबूल की शाख पर भी प्यारे यूँ ही आम फलते है |
मै जलती आग में कूदा, तभी सावन वहाँ बरसा
आशिक की खिदमत में खुदा भी साथ चलते है |
जरा सोती हुई इन पलकों पर तुम होठ रखो तो
मेरी आँखे बता देगी, कि अरमां भी मचलते है |
छलकते नूर से पूछो, जिसे तुम अश्क कहते हो
कि कैसे 'सागर' में भी लहरों के जज्बात पलते है |