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झाड़ू-1 / प्रभात

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धूप की झाड़ू
हवा की झाड़ू
बारिश की झाड़ू
पृथ्वी के पास है कितने रंगों की झाड़ू

एक विशाल फूल की पंखुंडि़यों की तरह
खुलती है दुनिया रोज़ सवेरे
फिर से शुरू होती है पृथ्वी पर नयी हलचल

कुछ लोग मगर रहते हैं विकल
बारिश में भी नहीं हटती उनके चेहरों की धूल
हवा नहीं ले जाती उनके फेंफड़ों में भर गए कचरे को बुहार कर
उनके अँधेरों को बुहारने नहीं आती कभी
गुलाबी किरनों की सींक की झाड़ू