भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंत कब कहाँ / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:50, 29 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=चिन्ता / अज्ञेय }} {{KKC...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन्त? कब, कहाँ, किस का अन्त?
दोनों ही असम्भव...
इस बढ़ते हुए अन्तरावकाश के कारण किसी दिन वह तेजोराशि अदृश्य हो जाएगी- और तू, क्षुद्र पक्षी, तू शून्य में भटकता रह जाएगा-
शायद खो जाएगा...
पागल, तेरा खेल समाप्त नहीं होगा!

दिल्ली जेल, 27 जून, 1932