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जीवन बीता जा रहा है / अज्ञेय
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जीवन बीता जा रहा है। प्रत्येक वस्तु बीती जा रही है।
हम ने कामना की थी, वह बीत गयी। हम ने प्रेम करना आरम्भ किया, पर वह भी बीत गया। हम विमुख हो गये, एक-दूसरे से घृणा करने लगे, फिर उस की भी निरर्थकता प्रकट हुई, और फिर वह ज्ञान भी बीत गया।
शीघ्र ही हम भी बीत जाएँगे, तुम और मैं। शीघ्र इस जीवन का ही अन्त हो जाएगा।
किन्तु इस अनन्त नश्वरता में एक तथ्य रह जाएगा- नकारात्मक तथ्य, किन्तु तथ्य- कि एक क्षण-भर के लिए हम-तुम इस निरर्थक तुमुल के अंश नहीं रहे थे, कि उस क्षण-भर के लिए हम-तुम दोनों ने अपने को पूर्णतया मटियामेट कर दिया था।
दिल्ली जेल, 7 दिसम्बर, 1932