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मेरे गायन की तान / अज्ञेय

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 मेरे गायन की तान टूट गयी है।
मैं चुप हूँ, पर मेरा गायन समाप्त नहीं हुआ, केवल तान मध्य में टूट गयी है।
मुझे याद नहीं आता कि मैं क्या गा रहा था- कि तान कहाँ टूट गयी। और जितना ही याद करता हूँ, उतना ही अधिक वह झूलती जाती है, और उतना ही मेरी उतावली अधिक उलझती जाती है।
पर मैं अभी क्षण-भर में उसे खोज लूँगा।
वह भूलेगी कैसे? मैं ने ही तो उसे अभी गाया था!
तेरे द्वार पर तो मैं केवल इसलिए खड़ा हूँ कि शायद तू कभी किसी भावातिरेक में एकाएक वही गा उठे जो मैं गा रहा था- और तब मैं भूली हुई तान फिर याद कर के गाने लगूँ- और चिरकाल तक गाता जाऊँ!
मेरे गायन की तान टूट गयी है।

मुलतान जेल, 22 दिसम्बर, 1933