भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विजयी! मैं इस का प्रतिदान नहीं माँगती / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:12, 3 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=चिन्ता / अज्ञेय }} {{KKC...' के साथ नया पन्ना बनाया)
विजयी!
मैं इस का प्रतिदान नहीं माँगती।
यह भी नहीं कि तुम इन्हें ग्रहण ही करो।
भेंट का साफल्य उसे दे देने में ही है, उस की स्वीकृति में नहीं। तुम नि:शंक हो कर इन्हें ठुकराओ और अपने विजय-पथ पर बढ़े चले जाओ!
विजयी!
1934