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पथ में आँखें आज बिछीं / अज्ञेय

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 पथ में आँखें आज बिछीं प्रियदर्शन! तेरा दर्शन पा के,
तोड़ बाँध अस्तित्व मात्र के आज प्राण बाहर हैं झाँके;

पर मानस के तल में जागृति-स्मृति यह तड़प-तड़प कहती है-
प्रेयस! मन के किरण-कर तुझे घेरे ही तो रहे सदा के!

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