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शशि रजनी से कहता है / अज्ञेय

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शशि रजनी से कहता है, 'प्रेयसि, बोलो क्या जाऊँ?'
कहता पतंग से दीपक, 'यह ज्वाला कहो बुझाऊँ?'
तुम मुझ से पूछ रहे हो-'यह प्रणय-पाश अब खोलूँ?'
इस को उदारता समझूँ-या वक्ष पीट कर रो लूँ!

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