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प्रियतम, एक बार और / अज्ञेय

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प्रियतम, एक बार और, एक क्षण-भर के लिए और!
मुझे अपनी ओर खींच कर, अपनी समर्थ भुजाओं से अपने विश्वास-भरे हृदय की ओर खींच कर, संसार के प्रकाश से मुझे छिपा कर, एक बार और खो जाने दो, एक क्षण-भर के लिए और समझने दो कि वह आशंका निर्मूल है, मिथ्या है!

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