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जब मैं वाताहत झरते / अज्ञेय
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जब मैं वाताहत झरते फूल सरीखी उस के पैरों में जा गिरी, तब उसने निर्मम स्वर में पूछा-
जिस देवता के वरदान का भार सहने की क्षमता तुझ में नहीं थी, उसे तूने अपनी आराधना द्वारा क्यों प्रसन्न किया?