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जीवन तेरे बिन भी है / अज्ञेय

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 जीवन तेरे बिन भी है!
पत्र नहीं, फल-फूल नहीं हैं परिमल नहीं पराग नहीं है
शिशिर-तिमिर में नन्दन-कानन ही अब विजन विपिन भी है।
व्यथा भार के बोझल पलक, अश्रु-तुहिन आँखों से ढलके,

प्राणों पर तमसा छायी है पर सुनती हूँ दिन भी है!
बहा जा रहा काल निरन्तर, घड़ी-घड़ी पल-पल गिन-गिन कर
पर वियोग-रजनी की साँसें दीर्घ नहीं, अनगिन भी हैं!
मिलन यहाँ है मिथ्या, माया तथ्य लुटी आत्मा ने पाया

बँधी हुई तो रही सदा से, हाय आज विरहिन भी है।
दीप, लुटा दो अब यह ज्वाला, ऊषा में भविष्य है काला,
ज्योति काँपती थी सन्ध्या में, प्रात: काल मलिन भी है!
जीवन तेरे बिन भी है!