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वसंत की बदली / अज्ञेय
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यह वसन्त की बदली पर क्या जाने कहीं बरस ही जाय?
विरस ठूँठ में कहीं प्यार की कोंपल एक सरस ही जाय?
दूर-दूर, भूली ऊषा की सोयी किरण एक अलसानी-
उस की चितवन की हलकी-सी सिहरन मुझे परस ही जाय?
लखनऊ, 8 मार्च, 1948