भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँदनी जी लो / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 6 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=बावरा अहेरी / अज्ञ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शरद चाँदनी बरसी
अँजुरी भर कर पी लो।

ऊँघ रहे हैं तारे सिहरी सरसी
ओ प्रिय कुमुद ताकते अनझिप
क्षण में तुम भी जी लो।

सींच रही है ओस हमारे गाने
घने कुहासे में झिपते चेहरे पहचाने
खम्भों पर बत्तियाँ खड़ी हैं सीठी
ठिठक गये हैं मानो पल-छिन आने-जाने।

उठी ललक हिय उमँगा अनकहनी अलसानी
जगी लालसा मीठी
खड़े रहो ढिंग, गहो हाथ पाहुन मनभाने,
ओ प्रिय, रहो साथ
भर-भर कर अँजुरी पी लो

बरसी शरद चाँदनी
मेरा अन्त:स्पन्दन तुम भी क्षण-क्षण जी लो!
शरद चाँदनी बरसी अँजुरी भर कर पी लो।

दिल्ली, 22 अक्टूबर, 1950