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मुझे तीन दो शब्द / अज्ञेय

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मुझे तीन दो शब्द कि मैं कविता कह पाऊँ।

एक शब्द वह जो न कभी जिह्वा पर लाऊँ,

और दूसरा : जिसे कह सकूँ
किन्तु दर्द मेरे से जो ओछा पड़ता हो।

और तीसरा : खरा धातु, पर जिस को पा कर पूछूँ-
क्या न बिना इस के भी काम चलेगा? और मौन रह जाऊँ।

मुझे तीन दो शब्द कि मैं कविता कह पाऊँ।

रीवाँ, 21 फरवरी, 1955