भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई कहे या न कहे / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 8 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=इन्द्र-धनु रौंदे ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह व्यथा की बात कोई कहे या न कहे।

सपने अपने झर जाने दो, झुलसाती लू को आने दो
पर उस अक्षोभ्य तक केवल मलय समीर बहे।
यह बिदा का गीत कोई सुने या सुने।

मेरा पथ अगम अँधेरा हो, अनुभव का कटु फल मेरा हो
वह अक्षत केवल स्मृति के फूल चुने!

फिरेंज (इटली), दिसम्बर, 1955